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Tuesday, August 17, 2021

असाव, अरिष्ट, अवलेह, क्वाथ आदि में अंतर

आयुर्वेद में औषधियों को दीर्घकाल तक उनके बिना गुण-धर्म का ह्रास हुए संरक्षित रखना एक प्रमुख प्रकरण है। स्वरस और क्वाथ सीघ्र खराब हो जाते हैं, उनमें फफूंद लग जाती है या दुर्गंध आने लगती है। सुखी औषधियां और उनके चूर्ण कुछ महीनों खास कर वर्षा ऋतु में अपने गुण-धर्म खो देते हैं अर्थात वीर्यहीन होकर उपयोगी नहीं रहते।

असाव, अवलेह, अरिष्ट आदि प्रकरणों से दीर्घस्थाई या चिरस्थाई औषधियां बना कर संरक्षित कर ली जाती हैं। इनसे निर्मित औषधियों की प्रभाविता भी ज्यादा होती है। स्वरस तथा मूलक्वाथ के गुणों के संरक्षणार्थ व विवर्धनार्थ असाव और अरिष्ट का निर्माण किया जाता है। इन द्रव्यों में उपस्थित मद्यांश की मात्रा, औषधियों की योगवाही गुण या जैवउपलब्धता (bioavailability) भी बढ़ा देती है। यह गुण अवलेह व पाक में नहीं पाया जाता है।

स्वरस - ताज़ी औषधियों को कूट-पीस कर नीचेड़ लेने से स्वरस प्राप्त होता हैं। सुखी औषधियों को दोगुने जल में 24 घण्टे भिगो कर, कूट कर छान लेने से स्वरस प्राप्त होता है। ताज़ी हरी औषधियों को पीस कर जो चटनी बनाई जाती है उसे कल्क कहा जाता है।

क्वाथ - औषधियों को उबाल कर, ठंडा कर फिर छान कर क्वाथ प्राप्त किया जाता है। ताजी औषधियों को दो से चार गुना जल और सुखी औषधियों को (कुटी हुई, जौ-कुट) 8 से 16 गुने जल में मिलाकर पकाते हैं तथा जल के चतुर्थांश शेष रहने पर छान लेते हैं।

आसव - स्वरस को मधुर द्रव्य और धाय के फूल आदि में मिला कर जो मद्य सिद्ध किया जाता है उसे असाव कहते हैं। असाव में अग्नि संस्कार न किए जाने के कारण इनका गुण शीतल होता है और गुरु होने के कारण कम सुपाच्य होते हैं।

अरिष्ट - क्वाथ को मधुर द्रव्य और धाय के फूल आदि में मिला कर जो मद्य सिद्ध किया जाता है उसे अरिष्ट कहते हैं। अरिष्ट उष्ण वीर्य होता है क्योंकि इसके निर्माण में अग्नि संस्कार का प्रयोग किया जाता है । अपने उष्ण गुण-धर्म के कारण अरिष्ट अधिक सुपाच्य होते हैं।

अवलेह - औषधियों के चूर्ण या स्वरस को शहद के साथ मिलाने पर अवलेह बनता है। अवलेह प्रकरण यूनानी ज्ञान से लिया गया है जिसमें वो लोग माजून (शहद) को उबालकर उसमें औषधियां मिला कर औषधियों का निर्माण करते हैं। लेकिन आयुर्वेद में गर्म किए गए शहद को विष समान वर्जित किया गया है, अतः आयुर्वेद में शहद को बिना गरम किए ही प्रयुक्त किया जाता है और औषधियों के गुण न्यून नहीं होते हैं।

पाक - औषधियों के चूर्ण या स्वरस को मिश्री की चाशनी में पकाने से पाक प्राप्त होता है। पाक को यूनानी माजून पद्धति की तरह ही तैयार किया जाता है बस इसमें शहद के स्थान पर मिश्री का उपयोग करते हैं, क्योंकि शहद को गरम करना आयुर्वेद में सिद्धांत विरुद्ध है।

बालक, स्त्री, वृद्ध, जीर्ण रोगी या जो कड़वे चूर्ण आदि औषधियों का सेवन नहीं कर पाते और भस्म जैसी न्यून मात्रा में दी जाने वाली औषधियों के लिए पाक, अवलेह आदि अनुकूल रहते हैं।

पाक स्वरस का ही रूप है जो शहद में संरक्षित किया जाता है व अवलेह क्वाथ का स्वरूप है जो मिश्री की चाशनी में अधिक दिनों तक संरक्षित रहता है। अनेक शर्बत, रूह-आफ़जा, मुरब्बा आदि अवलेह ही हैं।